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हद-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
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वो नाराज हैं कि आसमाँ से तोड़ा नहीं चाँद को,
समझा दे कोई आशिकी निभाने की भी हद है ,


कहने से डरता हूँ मैं , चुप रहकर मरता हूँ मैं
मोहब्बत में इस कदर , फसाने की भी हद है .

ये आपका ही प्यार है कि जिन्दा मैं अबतलक
अब मर के यूं ईश्क को बताने की भी हद है

छत की जद्दोह्द में , कब्र तो नसीब की
खुदा तेरा यूं रहमत बरसाने की भी हद है

अजय अमिताभ सुमन

उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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