बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
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एक भैंसजन्म लेती है
घास खाती है
दूध देती है
दही देती है
घी देती है
वो झूठ नहीं बोल सकतीवो निंदा नहीं कर सकती
किसी का उपहास नहीं कर सकती
इसलिए बच्चे जनती है नि-स्वार्थ
ताकि आदमी को
दूध मिल सके
दही मिल सके
घी मिल सके
अंत में बूढी हो
चढ़ जाती है किसी कसाई के हाथ
क्योंकि भैंस कपटी नहीं होतीआदमी की तरह
निज स्वार्थ साध नहीं सकती
अजय अमिताभ सुमनउर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी
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