बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
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कोई आता नहीं छोड़ने
बस के पास
नहीं लेता कोई आपना हाल चाल
नहीं रखता कोई यात्रा का ख्याल
भाई व्यस्त है अपनी नौकरी में
परिवार चलाने के लिए
ऑफिस जाना मज़बूरी है
और भाभी नहीं आ सकती
बच्चे भी नहीं आ सकते
स्कूल जाना जरुरी है
अब यात्रा में खाने के लिए
कोई चना भुनवाता नहीं
और बस के आँखों से ओझल हो जाने तक
हाथ डुलता नहीं
छोड़ रहा हूँ अपने गाँव को
दूर से एक पराये की तरह
दादा के गुजर जाने के बाद
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