Menu
blogid : 25176 postid : 1325565

गधे आदमी नहीं होते-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
  • 175 Posts
  • 2 Comments

गधे आदमी नहीं होते

क्योंकि दांत से घास खाता है ये
दांते निपोर नहीं सकता

आँख से देखता है ये

आँखे दिखा नहीं सकता

गधा अपना मन नहीं बदलता

हालत बदलने पे आदमी की तरह
रंग नहीं बदलता

खुश होने पे मालिक के सामने दुम हिलाता है
औरो पे हँसता नहीं

भूख लगने पे ढेंचू ढेंचू करता है
औरों की चुगली करता नहीं

दुलत्ती मरता है चोट लगने पे
लंगड़ी नहीं मारता

दिखाने के लिए नहीं काम नहीं करता
काम से टंगड़ी नहीं झारता

औरों के मुकाबले ज्यादा वजन ढोये
तो इसे जलन नहीं होती

अगर दूसरे गधे आराम फरमाते है

तो इसे कुढन नहीं होती

गधों को आदमी की तरह पेट के दांत नहीं होते

गधे गधे होते है

आदमी की तरह बंद किताब नहीं होते

इसीलिए गधे आदमी नहीं होते

अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनामकोहड़ाबाज़ारी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh