बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
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एक आदमी
सो सकता है,
जब
नींद नहीं आती।
एक आदमी
खा सकता है ,
जब
क्षुधा नहीं सताती।
जानवर
उकसाने पर
गुर्राते हैं ,
आदमी गुर्राने को
उकसाता है।
जानवरों के
मौसम होते है
प्यार करने को,
आदमी को
मौसम बेमौसम
प्यार का भुत
सताता है।
और
आदमी की आँखों से
झर सकते है
घड़ियाली आसूँ
पर घड़ियालों से
नहीं आ सकते
आदमी वाले आंसू
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