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अजनबी-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
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क्यूँ आज भी हमारा , हमदम नहीं इस शहर में ,
ना पूछा किसी ने , ना हमसे बताया गया .

मुलाकातें होती रही , रिश्ते तो बनते रहे ,
ना किसी को थी जरूरत , ना हमसे निभाया गया .

दुनिया तेरे तरीकों ने , सताया बहुत हमें ,
समझ के नाकाबिल ना , हमको समझाया गया .

फासले बढते रहे , दिल-दिमागो के दरमियाँ ,
उलझनें सजती रहीं , ना हमसे सुलझाया गया .

बेनाम खुद से अजनबी हम , बन गए रफ्ता
रूठे जो खुद से खुद को , ना अब तक मनाया गया .

अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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