बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
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अनगिनत पृथ्वियां
इसके भीतर
अनगिनत कहानियां
इसके भीतर
प्रेम की
वार की
अनगिनत राज्य
अनगिनत राजे
इसके भीतर
अनगिनत दृश्य
आते जाते
दुहराते
अनगिनत समय से
और
सबमे संलिप्त
और सबसे निर्लिप्त
आकाश की भांति
होता है योगी
एकदम अछूता
एक द्रष्टा
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