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चाहत-बेनाम कोहड़ाबाजारी

बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
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अदा भी सनम के , क्या खूब है खुदा मेरे ।
लेके दिल पूछते है , क्या दिल से चाहता हूँ ।


ये दिल जो ले गए हो , दिमाग भी ले जाओ ।
मेरी जमीं तुम्हारी , आकाश भी ले जाओ ।


बस इसी जनम की , नही है मुझको चाहत ।
लगता है ऐसा मुझको, सदियों से चाहता हूँ ।

तू समां जाए मुझमे , मैं समां जाऊँ तुझमे ।
बस इतना चाहता हूँ , बस इतना चाहता हूँ ।

बेनाम कोहड़ा बाजारी

उर्फ़

अजय अमिताभ सुमन

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