Menu
blogid : 25176 postid : 1289217

गुनाह-बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी उवाच
  • 175 Posts
  • 2 Comments
छोड दी मैंने कोशिश
ज़माने को बदलने की
शिद्दत से थी जरुरत
खुद हीं संभलने की
हजारों करके गुनाह
बदलता रहा नकाब मैं
आदत बना ली थी
ज़माने को कोसने की
जेहन में थी मैल और
चेहरे पे थी नजर मेरी
दिले-गन्दगी की चाहत
पोशाक अपनी बदलने की
जमीर के गुनाहों ने
गन्दा किया बेनाम को
नहीं थी इनकी फितरत
आंसुओ से धुलने की

बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh